रविवार, 24 अगस्त 2014

दमा (श्वास रोग ) Asthma


आज के समय में दमा तेज़ी से स्त्री - पुरुष व बच्चों को अपना शिकार बना रहा है | साँस लेने में दिक्कत या कठिनाई महसूस होने को श्वास रोग कहते हैं | फेफड़ों की नलियों की छोटी-छोटी पेशियों में जब अकड़न युक्त संकुचन उत्पन्न होता है तो फेफड़ा, साँस को पूरी तरह अंदर अवशोषित नहीं कर पाता है जिससे रोगी पूरा श्वास खींचे बिना ही श्वास छोड़ने को विवश हो जाता है | इसी स्थिति को दमा या श्वास रोग कहते हैं | 
दमा को पूर्ण रूप से ठीक करने हेतु प्राणायाम का अभ्यास सर्वोत्तम है |
विभिन्न औषधियों से दमे का उपचार :----
१- अदरक के रस में शहद मिलाकर चाटने से श्वास , खांसी व जुक़ाम में लाभ होता है ।
२- प्याज़ का रस , अदरक का रस , तुलसी के पत्तों का रस व शहद ३-३ ग्राम की मात्रा में लेकर सुबह-शाम सेवन करने से अस्थमा रोग नष्ट होता है |
३- काली मिर्च - २० ग्राम , बादाम की गिरी - १०० ग्राम और खाण्ड - ५० ग्राम लें | तीनों को अलग - अलग बारीक़ पीस कर चूर्ण बना लें , फिर तीनों को अच्छी तरह से मिला लें | इस मिश्रण की एक चम्मच लें और रात को सोते समय गर्म दूध से लें , लाभ होगा |
विशेष :-- जिनको मधुमेह हो वे खाण्ड का प्रयोग न करें तथा जिनको अम्लपित्त [acidity ] हो वे काली मिर्च १० ग्राम की मात्र में प्रयोग करें |

रविवार, 17 अगस्त 2014

चीकू



चीकू मूलतः दक्षिण अमेरिका में एवं अन्य उष्णकटिबंधीय भागों में प्राप्त होता है तथा भारत में भी इसकी खेती की जाती है | यह वृक्ष समुद्र के किनारों के प्रदेशों में विशेषतया उत्पन्न होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल वर्ष में अत्यधिक समय तक होता है | इसके फल में शर्करा,पेक्टिन,थ्रिओनिन तथा विटामिन C पाया जाता है |
चीकू के औषधीय प्रयोग -
१- पके चीकू के फलों के सेवन से दस्तों में लाभ होता है |
२- कच्चे फलों को पीसकर फोड़ों पर लगाने से फोड़े पककर फूट जाते हैं तथा पस बाहर निकल जाती है |
३-चीकू के १-२ फलों का नियमित सेवन करने से शरीर पुष्ट होता है तथा दुर्बलता दूर होती है |
४-चीकू के फल पित्तशामक होते हैं,अतः इसका सेवन करने से पित्तज विकारों तथा पित्तज्वर का शमन होता है |
५- इसके फल को कूट कर गर्म कर सूजन युक्त स्थान पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है |

करौंदा

करौंदा ---


कच्चा करौंदा खट्टा और भारी होता है। प्यास को शान्त करने में अति उत्तम है। रक्त पित्त को हरता है, गरम तथा रूचिकारी होता है। पका करौंदा, हल्का मीठा रूचिकर और वातहारी होता है। करोंदा में व्याप्त दोषों को नमक, मिर्च और मीठे पदार्थ दूर हो जाते हैं। 
- कच्चे करौंदे का अचार बहुत अच्छा होता है। 
- इसकी लकड़ी जलाने के काम आती है।
- फलों के चूर्ण के सेवन से पेट दर्द में आराम मिलता है। - करोंदा भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है, प्यास रोकता है और दस्त को बंद करता है। ख़ासकर पैत्तिक दस्तों के लिये तो अत्यन्त ही लाभदायक है।
- सूखी खाँसी होने पर करौंदा की पत्तियों के रस का सेवन लाभकारी होता है।
- पातालकोट में आदिवासी करौंदा की जड़ों को पानी के साथ कुचलकर बुखार होने पर शरीर पर लेपित करते है और गर्मियों में लू लगने और दस्त या डायरिया होने पर इसके फ़लों का जूस तैयार कर पिलाया जाता है, तुरंत आराम मिलता है।
- खट्टी डकार और अम्ल पित्त की शिकायत होने पर करौंदे के फलों का चूर्ण काफ़ी फ़ायदा करता है, आदिवासियों के अनुसार यह चूर्ण भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है।
- करोंदा के फल को खाने से मसूढ़ों से खून निकलना ठीक होता है, दाँत भी मजबूत होते हैं। फलों से सेवन रक्त अल्पता में भी फ़ायदा मिलता है।
- सर्प के काटने पर करौंदे की जड़ को पानी में उबालकर क्वाथ करें। फिर इस क्वाथ को सर्प काटे रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
- घाव के कीड़ों और खुजली पर करौंदे की जड़ निकाल कर पानी में साफ़ धोकर उसे पानी के साथ महीन पीस कर फिर तेल में डालकर खूब पकायें, फिर इस तेल का प्रयोग घाव के कीड़ों और खुजली पर करने से फायदा पहुँचता है।
- ज्वर आने पर करौंदे की जड़ का क्वाथ बनाकर देने से लाभ मिलता है।
- खांसी में करौंदे के पत्तों के अर्स को निकालकर उसमें शहद मिलाकर चाटना श्रेष्ठ है।
- जलंदर रोग में करौंदों का शर्बत, हर दिन एक तोला दूसरे दिन दो तोला तीसरे दिन तीन तोला इसी प्रकार एक हफ्ते तक एक तोला रोज बढ़ाते जाए। एक हफ्ते के भीतर लाभ मिलना शुरू हो जायेगा।
- करौंदा का प्रयोग मूंगा व चांदी की भस्म बनाने में भी किया जाता है। मूंगा भस्म बनाने के लिये कच्चे करौंदों को लेकर बारीक पीसें फिर उसकी भली भांति लुगदी बनाकर उस लुगदी में मूगों को रखें फिर उस लुगदी के ऊपर सात कपट मिट्टी कर, उपलों की आग में रखकर फूंके। पहले मन्दाग्नि, बीच में मध्यम तीक्ष्ण अग्नि दें तो मूंगा भस्म बन जायेगी।
- करौंदे का रस हाय ब्लड प्रेशर को कम करता है .
- करौंदे का सेवन करने के महिलाओं की मुख्य समस्या 'रक्तहीनता' (एनीमिया) से छूटकारा पाया जा सकता है ।

ये हैं एलर्जी से बचने के सबसे आसान आयुर्वेदिक तरीके.......





"एलर्जी" एक आम शब्द, जिसका प्रयोग हम कभी 'किसी ख़ास व्यक्ति से मुझे एलर्जी है' के रूप में करते हैं। ऐसे ही हमारा शरीर भी ख़ास रसायन उद्दीपकों के प्रति अपनी असहज प्रतिक्रया को 'एलर्जी' के रूप में दर्शाता है।

बारिश के बाद आयी धूप तो ऐसे रोगियों क़ी स्थिति को और भी दूभर कर देती है। ऐसे लोगों को अक्सर अपने चेहरे पर रूमाल लगाए देखा जा सकता है। क्या करें छींक के मारे बुरा हाल जो हो जाता है।

हालांकि एलर्जी के कारणों को जानना कठिन होता है, परन्तु कुछ आयुर्वेदिक उपाय इसे दूर करने में कारगर हो सकते हैं। आप इन्हें अपनाएं और एलर्जी से निजात पाएं !

- नीम चढी गिलोय के डंठल को छोटे टुकड़ों में काटकर इसका रस हरिद्रा खंड चूर्ण के साथ 1.5 से तीन ग्राम नियमित प्रयोग पुरानी से पुरानी एलर्जी में रामबाण औषधि है।

- गुनगुने निम्बू पानी का प्रातःकाल नियमित प्रयोग शरीर सें विटामिन-सी की मात्रा की पूर्ति कर एलर्जी के कारण होने वाले नजला-जुखाम जैसे लक्षणों को दूर करता है।

- अदरख,काली मिर्च,तुलसी के चार पत्ते ,लौंग एवं मिश्री को मिलाकर बनायी गयी 'हर्बल चाय' एलर्जी से निजात दिलाती है।

- बरसात के मौसम में होनेवाले विषाणु (वायरस)संक्रमण के कारण 'फ्लू' जनित लक्षणों को नियमित ताजे चार नीम के पत्तों को चबा कर दूर किया जा सकता है।

- आयुर्वेदिक दवाई 'सितोपलादि चूर्ण' एलर्जी के रोगियों में चमत्कारिक प्रभाव दर्शाती है।

- नमक पानी से 'कुंजल क्रिया' एवं ' नेती क्रिया" कफ दोष को बाहर निकालकर पुराने से पुराने एलर्जी को दूर कने में मददगार होती है।

- पंचकर्म की प्रक्रिया 'नस्य' का चिकित्सक के परामर्श से प्रयोग 'एलर्जी' से बचाव ही नहीं इसकी सफल चिकित्सा है।

- प्राणायाम में 'कपालभाती' का नियमित प्रयोग एलर्जी से मुक्ति का सरल उपाय है।

कुछ सावधानियां जिन्हें अपनाकर आप एलर्जी से खुद को दूर रख सकते हैं :-

- धूल,धुआं एवं फूलों के परागकण आदि के संपर्क से बचाव।

- अत्यधिक ठंडी एवं गर्म चीजों के सेवन से बचना।


- खटाई एवं अचार के नियमित सेवन से बचना।


हल्दी से बनी आयुर्वेदिक औषधि '

हरिद्रा खंड' के सेवन से शीतपित्त,खुजली,एलर्जी,और चर्म रोग नष्ट होकर देह में सुन्दरता आ जाती हे | बाज़ार में यह ओषधि सूखे चूर्ण के रूप में मिलती हे | इसे खाने के लिए मीठे दूध का प्रयोग अच्छा होता हे | परन्तु शास्त्र विधि में इसको निम्न प्रकार से घर पर बना कर खाया जाये तो अधिक गुणकारी रहता हे| बाज़ार में इस विधि से बना कर चूँकि अधिक दिन तक नहीं रखा जा सकता, इसलिए नहीं मिलता हे | घर पर बनी इस विधि बना हरिद्रा खंड अधिक गुणकारी और स्वादिष्ट होता हे | मेरा अनुभव हे की कई सालो से चलती आ रही एलर्जी ,या स्किन में अचानक उठाने वाले चकत्ते ,खुजली इसके दो तीन माह के सेवन से हमेशा के लिए ठीक हो जाती हे | इस प्रकार के रोगियों को यह बनवा कर जरुर खाना चाहिए | और अपने मित्रो कोभी बताना चाहिए| यह हानि रहित निरापद बच्चे बूढ़े सभी को खा सकने योग्य हे | जो नहीं बना सकते वे या शुगर के मरीज, कुछ कम गुणकारी, चूर्ण रूप में जो की बाज़ार में उपलब्ध हे का सेवन कर सकते हे |

हरिद्रा खंड निर्माण विधि

सामग्री –

हरिद्रा -३२० ग्राम, गाय का घी- २४० ग्राम,दूध- ५ किलो, शक्कर-२ किलो |
सोंठ ,कालीमिर्च,पीपल,तेजपत्र, छोटी इलायची, दालचीनी, वायविडंग, निशोथ, हरड, बहेड़ा, आंवले , नागकेशर,नागरमोथा, और लोह भस्म, प्रत्येक ४०-४० ग्राम ( यह सभी आयुर्वेदिक औषधि विक्रेताओ से मिल जाएँगी)| आप यदि अधिक नहीं बनाना चाहते तो हर वस्तु अनुपात रूप से कम की जा सकती हे |

( यदि हल्दी ताजी मिल सके तो १किलो २५० ग्राम लेकर छीलकर मिक्सर पीस कर काम में लें|)

बनाने की विधि-हल्दी को दूध में मिलाकार खोया या मावा बनाये, इस खोये को घी डालकर धीमी आंच पर भूने, भुनने के बाद इसमें शक्कर मिलाये| सक्कर गलने पर शेष औषधियों का कपड छान बारीक़ चूर्ण मिला देवे| अच्छी तरह से पाक जाने पर चक्की या लड्डू बना लें|
सेवन की मात्रा- २०-२५ ग्राम दो बार दूध के साथ|
(बाज़ार में मिलने वाला हरिद्रखंड चूर्ण के रूप में मिलता हे इसमें घी और दूध नहीं होता शकर कम या नहीं होती अत: खाने की मात्रा भी कम ३से ५ ग्राम दो बार रहेगी |

भुट्टा



हरी थी मन भरी थी , लाख मोती जड़ी थी ,
राजा जी के बाग़ में दुशाला ओढ़े खडी थी 
कच्चे पक्के बाल है उसके ,
मुखड़ा है सुहाना .....
बोलो क्या ???
- इन दिनों ताज़े भुट्टे बाज़ार में आ रहे है| नर्म भुट्टों को भूनकर घी या निम्बू-नमक लगाकर खाने का मज़ा ही कुछ और है| इससे दांत और जबड़े मज़बूत होते है|बच्चों को अवश्य देना चाहिए|
- जब भी भुने हुये भुट्टे खायें तो पहले दानो को खाकर बचे हिस्से को फेकें नही बल्कि उसे बीच से दो टुकडो मे तोड़ लें और फिर अंदर वाले भाग को सूंघे। इससे दाने जल्दी से पच जाते हैं। इन्हें गाय को खिला दें|
- कुछ टुकडो को जलाकर राख जमा कर लें और आवश्यकतानुसार श्वांस रोगों मे प्रयोग करें। इसमें स्वादानुसार सेंधा नमक मिला लीजिए। हर रोज कम से कम चार बार एक चौथाई चम्मच हल्का गरम पानी के साथ फांक लीजिए। खांसी समाप्त हो जाती है। इससे विशेषकर कुक्कुर खाँसी मे बड़ी राहत मिलती है।
- भुट्टे थोड़े कड़े हो तो इसके दानों को कद्दूकस कर उसका उपमा की तरह स्वादिष्ट व्यंजन बनता है या उसमे थोड़ा सा बेसन डाल कर गरमा गर्म पकौड़ियाँ बन जाती है|
- किसी को उबला भुट्टा पसंद है , किसी को उसकी करी. ताज़े भुट्टों को कद्दूकस कर सूप में मिलाएं तो अलग ही स्वाद आता है|
- भुट्टे से मीठा हलवा भी बनता है|
- आयुर्वेद के अनुसार भुट्टा तृप्तिदायक, वातकारक, कफ, पित्तनाशक, मधुर और रुचि उत्पादक अनाज है| इसकी खासियत यह है कि पकाने के बाद इसकी पौष्टिकता बढ जाती है।
- पके हुए भुट्टे में पाया जाने वाला कैरोटीनायड विटामिन-ए का अच्छा स्रोत होता है।
- भुट्टे को पकाने के बाद उसके 50 प्रतिशत एंटी-ऑक्सीअडेंट्स बढ़ जाते हैं। ये बढती उम्र को रोकता है और कैंसर से लड़ने में मदद करता है|पके हुए भुट्टे में फेरूलिक एसिड होता है जो कि कैंसर जैसी बीमारी में लड़ने में बहुत मददगार होता है।
- इसके अलावा भुट्टे में मिनरल्स और विटामिन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
- भुट्टे को एक बेहतरीन कोलेस्ट्रॉल फाइटर माना जाता है, जो दिल के मरीजों के लिए बहुत अच्छा है।
- बच्चों के विकास के लिए भुट्टा बहुत फायदेमंद माना जाता है। ताजे दूधिया (जो कि पूरी तरह से पका न हो) मक्का के दाने पीसकर एक खाली शीशी में भरकर उसे धूप में रखिए। जब उसका दूध सूख कर उड़ जाए और शीशी में केवल तेल रह जाए तो उसे छान लीजिए। इस तेल को बच्चों के पैरों में मालिश कीजिए। इससे बच्चों का पैर ज्यादा मजबूत होगा और बच्चा जल्दी चलने लगेगा।
- इस तेल को पीने से शरीर शक्तिशाली होता है। हर रोज एक चम्मच तेल को चीनी के बने शर्बत में मिलाकर पीने से बल बढ़ता है।
- ताजा मक्का के भुट्टे को पानी में उबालकर उस पानी को छानकर मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन व गुर्दों की कमजोरी समाप्त हो जाती है।
- टीबी के मरीजों के लिए मक्का बहुत फायदेमंद है। टीबी के मरीजों को या जिन्हें टीबी होने की आशंका हो हर रोज मक्के की रोटी खाना चाहिए। इससे टीबी के इलाज में फायदा होगा।
- मक्के के बाल (सिल्क) का उपयोग पथरी रोगों की चिकित्सा मे होता है। पथरी से बचाव के लिये रात भर सिल्क को पानी मे भिगोकर सुबह सिल्क हटाकर पानी पीने से लाभ होता है। पथरी के उपचार मे सिल्क को पानी में उबालकर बनाये गये काढ़े का प्रयोग होता है।
- यदि गेहूँ के आटे के स्थान पर मक्के के आटे का प्रयोग करें तो यह लीवर के लिये अधिक लाभकारी है।
- यह प्रचूर मात्रा में रेशे से भरा हुआ है इसपलिये इसे खाने से पेट का डायजेशन अच्छाै रहता है। इससे कब्ज, बवासीर और पेट के कैंसर के होने की संभावना दूर होती है।
- भुट्टे के पीले दानों में बहुत सारा मैगनीशियम, आयरन, कॉपर और फॉस्फोचरस पाया जाता है जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं।
- स्किैन रैश और खुजली के लिये भी भुट्टे का स्टािर्च प्रयोग किया जाता है जिससे स्कि न बहुत कोमल बन जाती है।
- एनीमिया को दूर करने के लिये भुट्टा खाना चाहिये क्यों कि इसमें विटामिन बी और फोलिक एसिड होता है ।
- भुट्टा दिल की बीमारी को भी दूर करने में सहायक है क्योंोकि इसमें विटामिन सी, कैरोटिनॉइड और बायोफ्लेविनॉइड पाया जाता है। यह कोलेस्ट्रॉील लेवल को बढने से बचाता है और शरीर में खून के फ्लो को भी बढाता है।
- इसका सेवन प्रेगनेंसी में भी बहुत लाभदायक होता है इसलिये गर्भवती महिलाओं को इसे अपने आहार में जरुर शामिल करना चाहिये। इसमें फोलिक एसिड पाया जाता है जिसकी कमी से होने वाला बच्चाओ अंडरवेट हो सकता है और कई अन्य बीमारियों से पीडि़त भी।

प्रकृति के संकेत खाद्य पदार्थ


1. अखरोट की रचना सिर की तरह होती है तथा उसके अंदर भरा हुआ गूदा मस्तिष्क की तरह होता है। यही गूदा पर्याप्त मात्रा में नियमित सेवन करने से सिर संबंधी समस्याओं पर कंट्रोल होता है तथा मस्तिष्क की कार्य क्षमता एवं क्रिया प्रणाली में पॉजीटिव प्रभाव नजर आने लगता है।
2. पिस्ता आँख की भाँति दिखाई देता है। पिस्ते के अंदर का खाया जाने वाला हरे रंग का हिस्सा आँख के लिए परम लाभदायक होता है, इसलिए नेत्रों के लिए परम लाभदायक होता है। नेत्र लाभ के लिए कुछ मात्रा में पिस्ते का सेवन हमें करना चाहिए या यूँ कहें कि नेत्र रोगों के इलाज में पिस्ता आपकी सहायता कर सकता है।
3. जिन्होंने किडनी को देखा है या जो उसके आकार से परिचित हैं, वे यह कह सकते हैं कि काजू, सोयाबीन तथा किडनी बीन जैसे कुछ मेवे तथा फली वाले अनाज वगैरह किडनी को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक हो सकते हैं।
4. किशमिश या अंगूर की रचना पित्ताशय (गाल ब्लैडर) से बहुत कुछ 'मैच' करती है, इसीलिए पित्ताशय को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए किशमिश या अंगूर का सेवन लाभदायक हो सकता है।
5. बादाम का आकार जहाँ एक ओर नेत्रों की तरह होता है, वहीं दूसरी ओर उसकी समानता मस्तिष्क से भी की जा सकती है। बादाम का नियमित सेवन नेत्र तथा मस्तिष्क दोनों ही के लिए परम प्रभावी होता है।
6. अनार के दानों का रंग रक्त के समान होने से अनारदानों का रस रक्त शोधक (खून की सफाई करने वाला) एवं रक्तर्द्धक (खून बढ़ाने वाला) होता है।
7. सेवफल का आकार और रंग भी बहुत कुछ हृदय के समान होता है, इसलिए सेवफल का नियमित सेवन हृदय के लिए विशेष लाभदायक होता है।
8. नारंगी की फाँकें किडनी और आँत से मेल खाती हैं, इसीलिए इसका नियमित सेवन किडनी तथा आँत के लिए फायदेमंद है।
9. गिलकी या घिया और तोरई आँत के एक भाग की तरह दिखाई देती है, इसलिए आँत की क्रिया प्रणाली को व्यवस्थित करने में इसका जवाब नहीं इनमें 'रफेज' की मात्रा भी बहुत है।
10. लम्बी-पतली ककड़ी तो मानो आँत ही हो। इसका सेवन कब्ज दूर करता है और आँत क्रिया प्रणाली को नियमित करता है। ऐसे अनेक प्राकृतिक संकेत या संदेश वनस्पतिज पदार्थों में छिपे हुए हैं, जिनको समझकर स्वास्थ्य लाभ उठाया जा सकता है।