बुधवार, 30 जुलाई 2014

अनेक रोगों का मूल कारण: विरुद्ध आहार




अनेक रोगों का मूल कारण: विरुद्ध आहार


         जो पदार्थ रस-रक्तादी धातुओं के विरुद्ध गुणधर्मवाले व वात-पित्त-कफ इन त्रिदोषों को प्रकुपित करनेवाले हैं, उनके सेवन से रोगों की उत्पत्ति होती है | इन पदार्थों में कुछ परस्पर गुणविरुद्ध, कुछ संयोगविरुद्ध, कुछ संस्कारविरुद्ध और कुछ देश, काल, मात्रा, स्वभाव आदि से विरुद्ध होते हैं | जैसे-दूध के साथ मूँग, उड़द, चना आदि सभी दालें, सभी प्रकार के खट्टे व मीठे फल, गाजर, शककंद, आलू, मूली जैसे कंदमूल, तेल, गुड़, शहद, दही, नारियल, लहसुन, कमलनाल, सभी नमकयुक्त व अम्लीय प्रदार्थ संयोगविरुध हैं | दूध व इनका सेवन एक साथ नहीं करना चाहिए |
इनके बीच कम-से-कम २ घंटे का अंतर अवश्य रखें | ऐसे ही दही के साथ उड़द, गुड़, काली मिर्च, केला व शहद; शहद के साथ गुड़; घी के साथ तेल नहीं खाना चाहिए |
         शहद, घी, तेल व पानी इन चार द्रव्यों में से दो अथवा तीन द्रव्यों को समभाग मिलाकर खाना हानिकारक हैं | गर्म व ठंडे पदार्थों को एक साथ खाने से जठराग्नि व पाचनक्रिया मंद हो जाती है | दही व शहद को गर्म करने से वे विकृत बन जाते हैं |
              दूध को विकृत कर बनाया गया छेना, पनीर आदि व खमीरीकृत  प्रदार्थ (जैसे-डोसा, इडली, खमण) स्वभाव से ही विरुद्ध हैं अर्थात इनके सेवन से लाभ की जगह हानि ही होती है | रासायनिक खाद व इंजेकशन द्वारा उगाये गये आनाज व सब्जियाँ तथा रसायनों द्वारा पकाये गये फल भी स्वभावविरुद्ध हैं |
             हेमंत व शिशिर इन शीत ऋतुओं में ठंडे, रुखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थों का सेवन, अल्प आहार तथा वसंत-ग्रीष्म-शरद इन उषण ऋतुओं में उषण पदार्थं व दही का सेवन कालविरुद्ध है | मरुभूमि में रुक्ष, उषण, तीक्षण पदार्थों (अधिक मिर्च, गर्म मसाले आदि) व समुद्रतटीय प्रदेशों में चिकने-ठंडे पदार्थों का सेवन, क्षारयुक्त भूमि के जल का सेवन देशविरुद्ध है |
            अधिक परिश्रम करनेवाले व्यक्तियों के लिए रुखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थ व कम भोजन तथा बैठे-बैठे काम करनेवाले व्यक्तियों के लिए चिकने, मीठे, कफवर्धक पदार्थ व अधिक भोजन अवस्थाविरुद्ध है |
            अधकच्चा, अधिक पका हुआ, जला हुआ, बार-बार गर्म किया गया, उच्च तापमान पर पकाया गया (जैसे-ओवन में बना व फास्टफूड), अति शीत तापमान में रखा गया (जैसे-फिर्ज में रखे पदार्थ) भोजन पाकविरुद्ध है |
            मल, मूत्र का त्याग किये बिना, भूख के बिना अथवा बहुत अधिक भूख लगने पर भोजन करना क्रमविरुद्ध है |
            जो आहार मनोनुकूल न हो वह ह्रदयविरुद्ध है क्योंकि अग्नि प्रदीप्त होने पर भी आहार मनोनुकूल न हो तो सम्यक पाचन नहीं होता |
            इस प्रकार के विरोधी आहार के सेवन से बल, बुद्धि, वीर्य व आयु का नाश, नपुंसकता, अंधत्व, पागलपन, भगंदर, त्वचाविकार, पेट के रोग, सूजन, बवासीर, अम्लपित्त (एसीडिटी), सफेद दाग, ज्ञानेन्द्रियों में विकृति व अषटोमहागद अथार्त आठ प्रकार की असाध्य व्याधियाँ उत्पन होती हैं | विरुद्ध अन्न का सेवन मृत्यु का भी कारण हो सकता है |
           अत: देश, काल, उम्र, प्रकृति, संस्कार, मात्रा आदि का विचार तथा पथ्य-अपथ्य का विवेक करके नित्य पथ्यकर पदार्थों का ही सेवन करें |
अज्ञानवश विरुद्ध आहार के सेवन से हानि हो गयी हो तो वमन-विरेचनादी पंचकर्म से शारीर की शुद्धी एंव अन्य शास्त्रोक्त उपचार करने चाहिए | आपरेशन व अंग्रेजी दवाएँ रोगों को जड़-मूल से नहीं निकालते | अपना संयम और नि:सवार्थ एंव जानकार वैध की देख-रेख में किया गया पंचकर्म विशेष लाभ देता है | इससे रोग तो मिटते ही हैं, १०-१४ वर्ष आयुष्य भी बढ़ सकता है |
          सबका हित चाहनेवाले पूज्य बापूजी हमें सावधान करते हैं: "नासमझी के कारण कुछ लोग दूध में सोडा या कोल्डड्रिंक डालकर पीते हैं | यह स्वाद की गुलामी आगे चलकर उन्हें कितनी भारी पड़ती है, इसका वर्णन करके विस्तार करने की जगह यहाँ नहीं है | विरुद्ध आहार कितनी बिमारियों का जनक है, उन्हें पता नहीं |
         खीर के साथ नमकवाला भोजन, खिचड़ी के साथ आइसक्रीम, मिल्कशेक - ये सब विरुद्ध आहार हैं | इनसे पाशचात्य जगत के बाल, युवा, वृद्ध सभी बहुत सारी बिमारियों के शिकार बन रहे हैं | अत: हे बुद्धिमानो ! खट्टे-खारे के साथ भूलकर भी दूध की चीज न खायें- न खिलायें | "

ऋतु-परिवर्तन विशेष
                 शीत व उष्ण ऋतुओं के बीच में आनेवाली वसंत ऋतु में न अति शीत, न अति उष्ण पदार्थों का सेवन करना चाहिए | सर्दियों के मेवे, पाक, दही, खजूर, नारियल, गुड आदि छोड़कर अब ज्वार की धानी, भुने चने, पुराने जों, मूँग, तिल का तेल, परवल, सूरन, सहिजन, सूआ, बथुआ, मेथी, कोमल बैंगन, ताजी नरम मूली तथा अदरक का सेवन करना चाहिए |
               सुबह अनुकूल हो ऐसी किसी प्रकार का व्यायाम जरुर करें | वसंत में प्रकुपित होनेवाला कफ इससे पिघलता है | प्रणायाम विशेषत: सूर्यभेदी प्रणायाम (बायाँ नथुना बंद करके दाहिने से गहरा श्वास लेकर एक मिनट रोक दें फिर बायें से छोडें) व   सूर्यनमस्कार कफ के शमन का उत्तम उपाय है | इन दिनों दिन में सोना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है |
              कफजन्य रोगों में कफ सुखाने के लिए दवाइयों का उपयोग न करें | खानपान में उचित परिवर्तन, प्रणायाम, उपवास, तुलसी-पत्र व गोमूत्र के सेवन एवं सूर्येस्नान से कफ का शमन होता है |

- Rishi Prasad Feb' 2012

मंगलवार, 29 जुलाई 2014

इलायची बड़ी (ग्रेटर कार्डमम)


इलायची बड़ी (ग्रेटर कार्डमम) -




बड़ी इलायची के फल एवं सुगन्धित कृष्ण वर्ण के बीजों से भला कौन अपरिचित हो सकता है | भारतीय रसोई में यह इस तरह से रची बसी है कि इसका प्रयोग मसालों से लेकर मिष्ठानों तक में किया जाता है |इसकी एक प्रजाति मोरंग इलायची भी होती है| यह पूर्वी हिमालय प्रदेश में विशेषतः नेपाल,पश्चिम बंगाल,सिक्किम,आसाम आदि में पायी जाती है | इसका छिलका मोटा तथा मटमैले रंग का धारीदार होता है | इसके बीज कृष्ण वर्ण के शर्करायुक्त गाढ़े गूदे के कारण आपस में चिपके हुए होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फ़रवरी से जून तक होता है |
इसके बीजों में ग्लाइकोसाइड,सिनिओल,लिमोनीन,टर्पिनिओल,फ्लेवोनोन आदि रसायन तथा वाष्पशील तेल पाया जाता है | इसके तेल में सिनिओल की अधिकता पायी जाती है |
आज हम आपको बड़ी इलायची के औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- बड़ी इलायची को पीसकर मस्तिष्क पर लेप करने से एवं बीजों को पीसकर सूंघने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है |

२- बड़ी इलायची को पीसकर शहद में मिलाकर छालों पर लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं |

३- यदि दांत में दर्द हो रहा हो तो बड़ी इलायची और लौंग के तेल को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर पीड़ायुक्त दांत पर लगाएं ,दर्द में शांति मिलेगी |

४- यदि अधिक थूक या लार आती हो तो बड़ी इलायची और सुपारी को बराबर-बराबर पीसकर ,१-२ ग्राम की मात्रा में लेकर चूसते रहने से यह कष्ट दूर हो जाता है |

५- पांच से दस बूँद बड़ी इलायची तेल में मिश्री मिलाकर नियमित सेवन करने से दमा में लाभ होता है |

६- दो ग्राम सौंफ के साथ बड़ी इलायची के ८-१० बीजों का सेवन करने से पाचन शक्ति बढ़ती है |

७- एक ग्राम बड़ी इलायची बीज चूर्ण को दस ग्राम बेलगिरी के साथ मिलाकर प्रातः सायं सेवन करने से दस्तों में लाभ होता है |

८- पिसी हुई राई के साथ बड़ी इलायची चूर्ण मिलाकर २-३ ग्राम की मात्रा में नियमित सेवन करने से लीवर सम्बंधित रोगों में लाभ होता है |

९- एक से दो बड़ी इलायची के चूर्ण को दिन में तीन बार नियमित सेवन करने से शरीर का दर्द ठीक होता है |

जुक़ाम (COLD)

जुक़ाम (COLD)-
जुक़ाम होना एक आम समस्या है | जुक़ाम का रोग किसी मौसम में हो सकता है परन्तु यह अक्सर दो मौसमों के बीच में होता है जैसे गर्मी और सर्दी | जुक़ाम प्रदूषण के कारण भी हो सकता है | किसी गर्म जगह से एकदम ठंडी जगह पर चले जाने के कारण,पेट में कब्ज,गर्म के ऊपर एकदम ठंडी वस्तुओं का सेवन,बारिश में अधिक भीगने तथा कसरत करने के तुरंत बाद नहाने से जुक़ाम हो जाता है | 
जुक़ाम का विभिन्न औषधियों से उपचार -

१- दस तुलसी के पत्ते तथा पांच काली मिर्च पानी में चाय की भांति उबालें तथा थोड़ा सा गुड़ डालें | इसे छानकर पीने से जुक़ाम में बहुत लाभ होता है |

२- अजवायन को पीसकर एक पोटली बना लें ,उसे दिन में कई बार सूंघने से बंद नाक खुल जाती है|

३- एक कप गर्म पानी में नींबू और चुटकी भर सेंधानमक डालकर सुबह खालीपेट और शाम को पीने से जुक़ाम ठीक हो जाता है |

४- लगभग १०० मिली पानी में तीन लौंग डालकर उबाल लें | उबलने पर जब पानी आधा रह जाए तब इसके अंदर थोड़ा सा नमक मिलाकर पीने से जुक़ाम दूर होता है |

५- पांच ग्राम अदरक के रस में पांच ग्राम शहद मिलाकर प्रतिदिन ३-४ बार चाटने से जुक़ाम में बहुत आराम मिलता है |



कढ़ी पत्ता (मीठा नीम,कैडर्य)

कढ़ी पत्ता (मीठा नीम,कैडर्य) -

अत्यन्त प्राचीन काल से भारत में मीठे नीम का उपयोग किया जा रहा है | कई टीकाकारों ने इसे पर्वत निम्ब तथा गिरिनिम्ब आदि नाम दिए हैं | इसके गीले और सूखे पत्तों को घी या तेल में तल कर कढ़ी या साग आदि में छौंक लगाने से ये अति स्वादिष्ट,सुगन्धित हो जाते हैं | दाल में इसके पत्तों का छौंक देने से दाल स्वादिष्ट बन जाती है,चने के बेसन में मिलाकर इसकी उत्तम रुचिकर पकौड़ी बनाई जाती है| आम,इमली आदि के साथ इसके पत्तों को पीसकर बनाई गई चटनी अत्यंत स्वादिष्ट व सुगन्धित होती है | इसके बीजों तथा पत्तों में से एक सुगन्धित तेल निकला जाता ही जो अन्य सुगन्धित तेलों के निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल क्रमशः फ़रवरी से अप्रैल तक तथा अप्रैल से अगस्त तक होता है | इसकी पत्तियों में ओक्सालिक अम्ल,कार्बोहाइड्रेट,कैल्शियम,फॉस्फोरस,अवाष्पशील तेल,लौह,थाइमिन,राइबोफ्लेविन,तथा निकोटिनिक अम्ल पाया जाता है |
कढ़ी पत्ते के औषधीय प्रयोग-

१- मीठे नीम के पत्तों को पीसकर मस्तक पर लगाने से सिर दर्द ठीक होता है |

२- मीठे नीम के पत्तों को पानी में उबालकर गरारे करने से छाले ठीक होते हैं तथा २-४ पत्तियों को चबा कर खाने से मुँह की दुर्गन्ध दूर होती है |

३- पांच से दस मिली मीठे नीम के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में शहद मिलाकर पीने से कफ विकारों का शमन होता है |

४- मीठे नीम के २-४ फलों को पीसकर खिलाने से अतिसार में लाभ होता है |

५- कढ़ी पत्ते के ५-१० पत्तों को पानी में पीसकर पिलाने से उल्टी में लाभ होता है |

६- मीठे नीम के पत्तों के रस में नींबू का रस मिलकर लेप करने से पित्ती तथा दाद में लाभ होता है |



सोमवार, 28 जुलाई 2014

आलू

आलू -



आलू को अनाज के पूरक आहार का स्थान प्राप्त है | यह सब्जियों का राजा माना जाता है क्योंकि दुनिया भर में सब्जियों के रूप में आलू का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है | आलू में कैल्शियम,लोहा,विटामिन -बी तथा फॉस्फोरस बहुत अधिक मात्रा में होता है | 
आलू के छिलके निकाल देने पर उसके साथ कुछ पोषक तत्व भी चले जाते हैं अतः आलू का छिलके सहित सेवन अधिक लाभप्रद है | आइए जानते हैं आलू के कुछ औषधीय गुण -

१- आलू मोटापा नहीं बढ़ाता है | आलू को तलकर,तीखे मसाले,घी आदि लगाकर खाने से मोटापा बढ़ता है | आलू को उबालकर या गर्म रेत अथवा गर्म राख पर भूनकर खाना लाभकारी है |

२- चोट लगने पर यदि शरीर में नील पड़ जाए तो उसपर कच्चा आलू पीसकर लगाने से लाभ होता है |

३- कच्चे आलू का आधा-आधा कप रस दिन में दो बार पीने से पेट की गैस में आराम मिलता है |

४- शरीर के जले हुए भाग पर आलो पीस कर लगाएं | ऐसा करने से जलन ख़त्म होकर आराम आ जाता है |

५- चेहरे पर कच्चा आलू रगड़ने से झाँइयों व मुहाँसों आदि के दाग मिटकर चेहरा कान्तियुक्त बनता है |

ईसबगोल (Spogel seeds)




ईसबगोल (Spogel seeds) -


ईसबगोल का मूल उत्त्पत्ति स्थान ईरान है और यहीं से इसका भारत में आयात किया जाता है | इसका उल्लेख प्राचीन वैद्यक शास्त्रों व निघण्टुओं में अल्प मात्रा में पाया जाता है| 10वीं शताब्दी पूर्व के अरबी और ईरान के अलहवीं और इब्नसीना नामक हकीमों ने अपने ग्रंथों में औषधि द्रव्य के रूप में ईसबगोल का निर्देश किया था | तत्पश्चात कई यूनानी निघण्टुकारों ने इसका खूब विस्तृत विवेचन किया | फारस में मुगलों के शासनकाल में इसका प्रारम्भिक प्रचार यूनानी हकीमों ने इसे ईरान से यहां मंगाकर किया | तब से जीर्ण प्रवाहिका और आंत के मरोड़ों पर सुविख्यात औषधोपचार रूप में इसका अत्यधिक प्रयोग किया जाने लगा और आज भी यह आंत्र विकारों की कई उत्तमोत्तम औषधियों में अपना खास दर्जा रखती है |इनके बीजों का कुछ आकार प्रकार घोड़े के कान जैसा होने से इसे इस्पगोल या इसबगोल कहा जाने लगा | आजकल भारत में भी इसकी खेती गुजरात,उत्तर प्रदेश,पंजाब और हरियाणा में की जाती है| औषधि रूप में इसके बीज और बीजों की भूसी प्रयुक्त की जाती है | बीजों के ऊपर सफ़ेद भूसी होती है | भूसी पानी के संपर्क में आते ही चिकना लुआव बना लेती है जो गंधरहित और स्वादहीन होती है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल दिसम्बर से मार्च तक होता है |
ईसबगोल के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव -
१- ईसबगोल को यूकलिप्टस के पत्तों के साथ पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है |

२- ईसबगोल को दही के साथ सेवन करने से आंवयुक्त दस्त और खूनी दस्त के रोग में लाभ मिलता है |

३- एक से दो चम्मच ईसबगोल की भूसी सुबह भिगोई हुई शाम को तथा शाम की भिगोई हुई सुबह सेवन करने से सूखी खांसी में पूरा लाभ मिलता है |

४- चार चम्मच ईसबगोल भूसी को एक गिलास पानी में भिगो दें और थोड़ी देर बाद उसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है |

५- ईसबगोल को पानी में लगभग दो घंटे के लिए भिगोकर रखें | इस पानी को कपड़े से छानकर कुल्ले करने से मुँह के छाले दूर हो जाते हैं |

कान का दर्द

कान का दर्द

एक ज्यादा आसान उपाय दो बूँद प्याज का रस कान में डालना तुरंत आराम देता है कान की किसी भी समस्या में चाहे दर्द किसी भी कारन से हो रहा हो


अनानास (Pineapple)



अनानास (Pineapple) -
अनानास ब्राज़ील का आदिवासी पौधा है | क्रिस्टोफर कोलंबस ने 1493 AD में कैरेबियन द्वीप समूह के ग्वाडेलोप नाम के द्वीप में इसे खोजा था और इसे 'पाइना दी इंडीज' नाम दिया | कोलंबस ने यूरोप में अनानास की खेती की शुरुआत की थी | भारत में अनानास की खेती की शुरुआत पुर्तगालियों ने 1548 AD में गोवा से की थी | अनानास की डालियाँ काटकर बोने से उग आती हैं | 
अनानास का फल बहुत स्वादिष्ट होता है | इसके कच्चे फल का स्वाद खट्टा तथा पके फल का स्वाद मीठा होता है । इसके फल में थाइमिन,राइबोफ्लेविन,सुक्रोस,ग्लूकोस,कैफीक अम्ल,सिट्रिक अम्ल,कार्बोहाईड्रेट तथा प्रोटीन पाया जाता है | आज हम आपको अनानास के कुछ औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- अनानास फल के रस में मुलेठी, बहेड़ा और मिश्री मिलाकर सेवन करने से दमे और खाँसी में लाभ होता है|

२- यदि शरीर में खून की कमी हो तो अनानास खाने व रस पीने से बहुत लाभ होता है | इसके सेवन से रक्तवृद्धि होती है और पाचनक्रिया तेज़ होती है |

३- अनानास के पके फल के बारीक टुकड़ों में सेंधानमक और कालीमिर्च मिलाकर खाने से अजीर्ण दूर होता है |

४- अनानास के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसमें बहेड़ा और छोटी हरड़ का चूर्ण मिलाकर देने से अतिसार और जलोदर में लाभ होता है |

५- अनानास के पत्तों के रस में थोड़ा शहद मिलाकर रोज़ २ मिली से १० मिली तक सेवन करने से पेट के कीड़े ख़त्म हो जाते हैं |

६- पके हुए अनानास का रस निकालकर उसे रूई में भिगो कर मसूड़ों पर लगाने से दांतों का दर्द ठीक होता है |

अंजनहारी (गुहेरी )-




अंजनहारी (गुहेरी )- 

आँखों की दोनों पलकों के किनारों पर बालों (बरौनियों) की जड़ों में जो छोटी-छोटी फुंसियां निकलती हैं,उसे ही अंजनहारी,गुहेरी या नरसराय भी कहा जाता है | कभी-कभी तो यह मवाद के रूप में बहकर निकल जाती है पर कभी-कभी बहुत ज़्यादा दर्द देती है और एक के बाद एक निकलती रहती हैं | चिकित्सकों के अनुसार विटामिन A और D की कमी से अंजनहारी निकलती है | कभी-कभी कब्ज से पीड़ित रहने कारण भी अंजनहारी निकल सकती हैं |


रविवार, 27 जुलाई 2014

What is The Proper Time 2 Have a BREAKFAST,LUNCH&DINNER.Must Watch And Never Get ILL BY BHAI Rajiv Dixit Ji

सभी जीव जन्तुओ की जठराग्नि सुबह सूरज निकलने के ढाई घंटे तक सबसे ज्यादा तीव्र रहती है और ये ही सही वक़्त होता है सबसे ज्यादा भोजन ग्रहण करने का |
अपने आप को पेट से सम्बन्धी सभी रोगों से अगर बचाना चाहते हो तो अपने खाने पीने का समय निर्धारित करे |

पहला सूत्र :
सुबह का भोजन सूरज निकलने के ढाई घंटे के भीतर समाप्त कर ले और इसमें आप के भोजन की मात्र सबसे ज्यादा होनी चाहिए |
दूसरा सूत्र :
दोपहर में सुबह से एक तिहाई कम भोजन ही करना चाहिए | कुछ भी ना खाए तो भी कोई नुक्सान नहीं होगा लेकिन आप कुछ भी हल्का जैसे कि फल आदि से दुपहर का भोजन का काम चला सकते है |
तीसरा सूत्र :
शाम के वक्त दोपहर से भी एक तिहाई कम भोजन करना चाहिए और उसको करने का सही समय है सूर्योदय से ४० मिनिट पहले तक आपका भोजन समाप्त हो जाना चाहिए |
चौथा सूत्र :
रात में वैसे तो कुछ नहीं खाना चाहिए , सिर्फ सोते समय दूध का सेवन लाभकारी रहता है |

इसी तरह पानी पीने के चार सूत्र है :
पहला सूत्र :
पानी सदा धीरे धीरे घूंट घूंट करके ही पीना चाहिए |
दूसरा सूत्र :
पानी सदा गुनगुना ही पीना चाहिए , ठंडा पानी पीना यानि वात रोगों को बुलावा देना है |
तीसरा सूत्र :
पानी खड़े होकर न पीये , बैठ कर पीये , इससे आप घुटने के दर्द से बचे रहेंगे |
चौथा सूत्र :
सुबह बिना कुल्ला किया पानी गुनगुना करके अवश्य ही पीना चाहिए |

What is The Proper Time 2 Have a BREAKFAST,LUNCH&DINNER.Must Watch And Never Get ILL BY BHAI RAJIV DIXIT JI

https://www.youtube.com/watch?v=TkJXNYHIWBg

शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

प्राकृतिक दिनचर्या

प्राकृतिक दिनचर्या [भाग - १ ]
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प्रकृति हमारे जीवन का अभिन्न अंग है | हमें प्राकृतिक दिनचर्या का पालन करना चाहिये क्योंकि इसी से हम अपने आपको स्वस्थ एवं निरोगी रख सकते हैं | 
आज हम आपको प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों से अवगत कराएंगे --
१-प्रतिदिन सूर्योदय से पहले उठना चाहिए । सुबह उठते समय बायीं करवट लेकर उठना चाहिए | 
२-उठने के बाद तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी , तीन-चार गिलास की मात्रा में बासी मुँह पीना चाहिए | सुबह के समय , खाली पेट ,चाय का सेवन नहीं करना चाहिए |
३-शौच के लिए जाने में किसी प्रकार का आलस्य नहीं करना चाहिए तथा शौच के समय दांतों को दबाकर रखना चाहिए , इससे हमारे दांत मजबूत होते हैं । सूर्य की ओर मुख करके मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए |
४-दांतों की सफ़ाई के लिए नीम की दातुन का प्रयोग करना चाहिए |
५-सुबह के समय हमें अवश्य ही टहलना चाहिए तथा प्राणायाम व आसन का अभ्यास भी अवश्य करना चाहिए |


प्राकृतिक दिनचर्या [भाग - २ ] [कल का शेष भाग]
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प्रकृति हमारे जीवन का अभिन्न अंग है | हमें प्राकृतिक दिनचर्या का पालन करना चाहिये क्योंकि इसी से हम अपने आपको स्वस्थ एवं निरोगी रख सकते हैं |
आज हम आपको प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों से अवगत कराएंगे ----
१-स्नान करने से पहले १० मिनट के लिए शरीर की मालिश करनी चाहिए | यदि प्रतिदिन यह संभव न हो तो सप्ताह में एक दिन ऐसा अवश्य करें |
२- भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए तथा भूख से थोड़ा कम ही खाना चाहिए , इससे पाचन सम्बन्धी विकार नहीं होते हैं |
३-भोजन करने के बाद थोड़ी देर वज्रासन में अवश्य बैठना चाहिए | रात्रि के भोजन के पश्चात 10-15 मिनट अवश्य टहलना चाहिए |
४-स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए | यदि हम प्रतिदिन चार - पांच तुलसी और नीम की पत्तियों का सेवन करें तो इससे शरीर में रोग नहीं होते हैं |
५-दिन में नहीं सोना चाहिए क्योंकि यह स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होता है |
६- रात को सोने से पूर्व पैर धोकर सोने से नींद अच्छी आती है | हमेशा पश्चिम या उत्तर दिशा की ओर पैर करके ही सोना चाहिए अथवा पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर सर करके ही सोना चाहिए | विशषकर विद्यार्धियों को पूर्व दिशा की ओर सर करके सोना चाहिए |



बेल का वृक्ष

बेल का वृक्ष बहुत प्राचीन है |
यह लगभग २०-३० फुट ऊंचा होता है | 
इसके पत्ते जुड़े हुए त्रिफाक और गंधयुक्त होते हैं | 
इसका फल ३-४ इंच व्यास का गोलाकार और पीले रंग का होता है | 
बीज कड़े और छोटे होते हैं | 
बेल के फल का गूदा और बीज एक उत्तम विरेचक (पेट साफ़ करने वाले ) माने जाते हैं | 
बेल शर्करा को कम करने वाला,कफ व वात को शांत करने वाला,अतिसार, मधुमेह,रक्तार्श,श्वेत प्रदर व अति रज : स्राव को नष्ट करने वाला होता है | 
आइए जानते हैं बेल के औषधीय गुण -


जामुन [ Jambul Tree ]

जामुन [ Jambul Tree ]

जामुन के सदाहरित वृक्ष जंगलों और सड़कों के किनारे सर्वत्र पाए जाते हैं | इसका पेड़ आम के पेड़ की तरह ही काफी बड़ा होता है | जामुन के पेड़ की छाल का रंग सफ़ेद-भूरा होता है | इसके पत्ते आम और मौलसिरी के पत्तों जैसे होते हैं | जामुन के फूल अप्रैल के महीने में लगते हैं और जुलाई से अगस्त तक जामुन पक जाते हैं | जामुन में लौह [ iron ] और phosphorus काफी मात्रा में होता है | 
जामुन मधुमेह , पथरी , लिवर ,तिल्ली और खून की गंदगी को दूर करता है | यह मूत्राशय में जमी पथरी को निकलता है | जामुन और उसके बीज पाचक और स्तम्भक होते हैं |
जामुन का विभिन्न रोगों में प्रयोग :-----
१- ३००- ५०० मिली ग्राम जामुन के सूखे बीज के चूर्ण को दिन में तीन बार लेने से मधुमेह में लाभ होता है |
२- जामुन के १० मि.ली. रस में २५० मिली ग्राम सेंधा नमक मिलाकर दिन में २-३ बार कुछ दिनों तक निरंतर पीने से मूत्राशयगत पथरी नष्ट होती है |
३- जामुन के १०-१५ मि.ली. रस में २ चम्मच मधु मिलाकर सेवन करने से पीलिया , खून की कमी तथा रक्त विकार में लाभ होता है |
४- जामुन के पत्तों की राख को दांतों और मसूढ़ों पर मलने से दाँत और मसूढ़े मजबूत होते हैं |
५- जामुन के ५-६ पत्तों को पीसकर लगाने से घाव में से पस बाहर निकल जाती है तथा घाव स्वच्छ हो जाते हैं ।
६- तंग जूतों से पाँव में जख्म हो गए हों तो जामुन की गुठली को पानी में पीसकर लगाने से लाभ होता है |
नोट :- जामुन का पका हुआ फल अधिक मात्र में सेवन करना हानिकारक हो सकता है , इसको नमक मिलाकर ही खाना चाहिए |

मलेरिया


मलेरिया एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोज़ोआ परजीवी द्वारा फैलता है। मलेरिया सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों में से एक है तथा भंयकर जन स्वास्थ्य समस्या है।मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनोफ़िलेज़ (Anopheles) मच्छर है। इसके काटने पर मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर के बहुगुणित होते हैं जिससे रक्तहीनता (एनीमिया) के लक्षण उभरते हैं (चक्कर आना, साँस फूलना, द्रुतनाड़ी इत्यादि) । इसके अलावा अविशिष्ट लक्षण जैसे कि बुखार, सर्दी, उबकाई, और जुखाम जैसी अनुभूति भी देखे जाते हैं। गंभीर मामलों में मरीज मूर्च्छा में जा सकता है और मृत्यु भी हो सकती है।