रविवार, 17 अगस्त 2014

प्रकृति के संकेत खाद्य पदार्थ


1. अखरोट की रचना सिर की तरह होती है तथा उसके अंदर भरा हुआ गूदा मस्तिष्क की तरह होता है। यही गूदा पर्याप्त मात्रा में नियमित सेवन करने से सिर संबंधी समस्याओं पर कंट्रोल होता है तथा मस्तिष्क की कार्य क्षमता एवं क्रिया प्रणाली में पॉजीटिव प्रभाव नजर आने लगता है।
2. पिस्ता आँख की भाँति दिखाई देता है। पिस्ते के अंदर का खाया जाने वाला हरे रंग का हिस्सा आँख के लिए परम लाभदायक होता है, इसलिए नेत्रों के लिए परम लाभदायक होता है। नेत्र लाभ के लिए कुछ मात्रा में पिस्ते का सेवन हमें करना चाहिए या यूँ कहें कि नेत्र रोगों के इलाज में पिस्ता आपकी सहायता कर सकता है।
3. जिन्होंने किडनी को देखा है या जो उसके आकार से परिचित हैं, वे यह कह सकते हैं कि काजू, सोयाबीन तथा किडनी बीन जैसे कुछ मेवे तथा फली वाले अनाज वगैरह किडनी को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक हो सकते हैं।
4. किशमिश या अंगूर की रचना पित्ताशय (गाल ब्लैडर) से बहुत कुछ 'मैच' करती है, इसीलिए पित्ताशय को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए किशमिश या अंगूर का सेवन लाभदायक हो सकता है।
5. बादाम का आकार जहाँ एक ओर नेत्रों की तरह होता है, वहीं दूसरी ओर उसकी समानता मस्तिष्क से भी की जा सकती है। बादाम का नियमित सेवन नेत्र तथा मस्तिष्क दोनों ही के लिए परम प्रभावी होता है।
6. अनार के दानों का रंग रक्त के समान होने से अनारदानों का रस रक्त शोधक (खून की सफाई करने वाला) एवं रक्तर्द्धक (खून बढ़ाने वाला) होता है।
7. सेवफल का आकार और रंग भी बहुत कुछ हृदय के समान होता है, इसलिए सेवफल का नियमित सेवन हृदय के लिए विशेष लाभदायक होता है।
8. नारंगी की फाँकें किडनी और आँत से मेल खाती हैं, इसीलिए इसका नियमित सेवन किडनी तथा आँत के लिए फायदेमंद है।
9. गिलकी या घिया और तोरई आँत के एक भाग की तरह दिखाई देती है, इसलिए आँत की क्रिया प्रणाली को व्यवस्थित करने में इसका जवाब नहीं इनमें 'रफेज' की मात्रा भी बहुत है।
10. लम्बी-पतली ककड़ी तो मानो आँत ही हो। इसका सेवन कब्ज दूर करता है और आँत क्रिया प्रणाली को नियमित करता है। ऐसे अनेक प्राकृतिक संकेत या संदेश वनस्पतिज पदार्थों में छिपे हुए हैं, जिनको समझकर स्वास्थ्य लाभ उठाया जा सकता है।

गोंद के औषधीय गुण


किसी पेड़ के तने को चीरा लगाने पर उसमे से जो स्त्राव निकलता है वह सूखने पर भूरा और कडा हो जाता है उसे गोंद कहते है .यह शीतल और पौष्टिक होता है . उसमे उस पेड़ के ही औषधीय गुण भी होते है . आयुर्वेदिक दवाइयों में गोली या वटी बनाने के लिए भी पावडर की बाइंडिंग के लिए गोंद का इस्तेमाल होता है .
- कीकर या बबूल का गोंद पौष्टिक होता है .
- नीम का गोंद रक्त की गति बढ़ाने वाला, स्फूर्तिदायक पदार्थ है।इसे ईस्ट इंडिया गम भी कहते है . इसमें भी नीम के औषधीय गुण होते है - पलाश के गोंद से हड्डियां मज़बूत होती है .पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।
- आम की गोंद स्तंभक एवं रक्त प्रसादक है। इस गोंद को गरम करके फोड़ों पर लगाने से पीब पककर बह जाती है और आसानी से भर जाता है। आम की गोंद को नीबू के रस में मिलाकर चर्म रोग पर लेप किया जाता है।
- सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है, यह पित्त का शमन करता है।अतिसार में मोचरस चूर्ण एक से तीन ग्राम को दही के साथ प्रयोग करते हैं। श्वेतप्रदर में इसका चूर्ण समान भाग चीनी मिलाकर प्रयोग करना लाभकारी होता है। दंत मंजन में मोचरस का प्रयोग किया जाता है।
- बारिश के मौसम के बाद कबीट के पेड़ से गोंद निकलती है जो गुणवत्ता में बबूल की गोंद के समकक्ष होती है।
- हिंग भी एक गोंद है जो फेरूला कुल (अम्बेलीफेरी, दूसरा नाम एपिएसी) के तीन पौधों की जड़ों से निकलने वाला यह सुगंधित गोंद रेज़िननुमा होता है । फेरूला कुल में ही गाजर भी आती है । हींग दो किस्म की होती है - एक पानी में घुलनशील होती है जबकि दूसरी तेल में । किसान पौधे के आसपास की मिट्टी हटाकर उसकी मोटी गाजरनुमा जड़ के ऊपरी हिस्से में एक चीरा लगा देते हैं । इस चीरे लगे स्थान से अगले करीब तीन महीनों तक एक दूधिया रेज़िन निकलता रहता है । इस अवधि में लगभग एक किलोग्राम रेज़िन निकलता है । हवा के संपर्क में आकर यह सख्त हो जाता है कत्थई पड़ने लगता है ।यदि सिंचाई की नाली में हींग की एक थैली रख दें, तो खेतों में सब्ज़ियों की वृद्धि अच्छी होती है और वे संक्रमण मुक्त रहती है । पानी में हींग मिलाने से इल्लियों का सफाया हो जाता है और इससे पौधों की वृद्धि बढ़िया होती
- गुग्गुल एक बहुवर्षी झाड़ीनुमा वृक्ष है जिसके तने व शाखाओं से गोंद निकलता है, जो सगंध, गाढ़ा तथा अनेक वर्ण वाला होता है. यह जोड़ों के दर्द के निवारण और धुप अगरबत्ती आदि में इस्तेमाल होता है .
- प्रपोलीश- यह पौधों द्धारा श्रावित गोंद है जो मधुमक्खियॉं पौधों से इकट्ठा करती है इसका उपयोग डेन्डानसैम्बू बनाने में तथा पराबैंगनी किरणों से बचने के रूप में किया जाता है।
- ग्वार फली के बीज में ग्लैक्टोमेनन नामक गोंद होता है .ग्वार से प्राप्त गम का उपयोग दूध से बने पदार्थों जैसे आइसक्रीम , पनीर आदि में किया जाता है। इसके साथ ही अन्य कई व्यंजनों में भी इसका प्रयोग किया जाता है.ग्वार के बीजों से बनाया जाने वाला पेस्ट भोजन, औषधीय उपयोग के साथ ही अनेक उद्योगों में भी काम आता है।
- इसके अलावा सहजन , बेर , पीपल , अर्जुन आदि पेड़ों के गोंद में उसके औषधीय गुण मौजूद होते है .

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

शिलाजीत सिर्फ ताकत की ही दवा नहीं

शिलाजीत सिर्फ ताकत की ही दवा नहीं



अच्छा स्वास्थ्य हमारी मूल आवश्यकता है। हमारी मित्र प्रकृति ने हमें अनेक ऐसे उपहार प्रदान किए हैं जो स्वस्थ रहने में हमारी मदद करते हैं। ऐसा ही एक उपहार है शिलाजीत। यह पत्थर की शिलाओं में ही पैदा होता है इसलिए इसे शिलाजीत कहा जाता है। ज्येष्ठ और आषाढ़ के महीने में सूयर् की प्रखर किरणों से पवर्त की शिलाओं से लाख की तरह पिघल कर यह बाहर निकल आता है जिसे बाद में इक
ट्ठा कर लिया जाता है। यह चार प्रकार का होता है। रजतए स्वण्रए लौह तथा ताम्र शिलाजीत। प्रत्येक प्रकार की शिलाजीत के गुण अथवा लाभ अलग.अलग हैं। रजत शिलाजीत का स्वाद चरपरा होता है। यह पित्त तथा कफ के विकारों को दूर करता है। स्वण्र शिलाजीत मधुरए कसैला और कड़वा होता है जो बात और पित्तजनित व्याधियों का शमन करता है। लौह शिलाजीत कड़वा तथा सौम्य होता है। ताम्र शिलाजीत का स्वाद तीखा होता है। कफ जन्य रोगों के इलाज के लिए यह आदर्श है क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है। समग्र रूप में शिलाजीत कफए चर्बीए मधुमेहए श्वासए मिर्गीए बवासीर उन्मादए सूजनए कोढ़ए पथरीए पेट के कीड़े तथा कइर् अन्य रोगों को नष्ट करने में सहायक होता है। यह जरूरी नहीं है कि शिलाजीत का सेवन तभी किया जाए जब कोइर् बीमारी हो स्वस्थ मनुष्य भी इसका सेवन कर सकता है। इससे शरीर पुष्ट होता है और बल मिलता है। विशेषज्ञों के अनुसार सेवन के लिए मात्रा बारह रत्ती से दो रत्ती के बीच निर्धारित की जानी चाहिए। मात्रा का निर्धारण रोगी की शारीरिक स्थिति उसकी आयु और उसकी पाचन शक्ति को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। शिलाजीत का सेवन दूध और शहद के साथ सुबह सूयोर्दय से पहले कर लेना चाहिए। इसके ठीक प्रकार पाचन के बाद अर्थात तीन.चार घंटे के बाद ही भोजन करना चाहिए। दिमागी ताकत के लिए प्रतिदिन एक चम्मच मक्खन के साथ शिलाजीत का सेवन लाभदायक होता है । इससे दिमागी थकावट नहीं होती। मधुमेहए प्रमेह और मूत्र संबंधी विकारों के निराकरण में शिलाजीत बेहद उपयोगी सिद्ध हुआ है। एक चम्मच शहदए एक चम्मच त्रिफला चूण्र के साथ लगभग दो रत्ती शिलाजीत का सेवन प्रमेह रोग को नष्ट कर देता है। इस मिश्रण का सेवन सूयरेदय से पहले ही करना चाहिए। मधुमेह के इलाज के लिए थोड़ी.थोड़ी मात्रा में प्रतिदिन लगातार शिलाजीत का सेवन तब तक किया जाना चाहिए जब तक कि लगभग पांच सेर मात्रा रोगी के शरीर में न पहुंच जाए। यह रोगी की स्थिति बहुत हद तक ठीक कर देता है। मूत्रावरोधए पीड़ा जलन और प्रमेह के उपचार के लिए पीपल और छोटी इलायची को बराबर मात्रा में मिलाकर चूण्र बना लेंए इस एक चम्मच चूण्र के साथ शिलाजीत का सेवन लाभदायक होता है। यदि किसी को बार.बार पेशाब आएए रात को भी पेशाब के लिए बार.बार उठना पड़े तथा एक साथ भारी मात्रा में पेशाब आए तो समझ लें कि ये लक्षण बहुमूत्रता के हैं। इस बीमारी को दूर करने के लिए शिलाजीतए बंगभस्मए छोटी इलायची के दाने और वंशलोचनल को समान मात्रा में लेकर शहद के साथ मिलाकर दो.दो रत्ती की गोलियां बनाकर गर्म दूध के साथ इनका सेवन करें। सुबह.शाम इसकी दो.दो गोलियां लेना ही पयरप्त होता है। साथ ही इससे शरीर सुडौल और शक्तिशाली भी बनता है। आधुनिक जीवन शैली में उच्च रक्तचाप एक आम समस्या बनता जा रहा है। रक्तचाप को सामान्य स्तर पर लाने के लिए काली साखि। पांच ग्राम और दस ग्राम मुलहठी में दो कप पानी डालकर काढ़ा बनाएं। जब यह पानी आधा रह जाए तो इसे छान लें। दो.दो रत्ती की एक.एक गोली के साथ काढ़े का सेवन करने और रात को किसी विरेचन चूण्र के प्रयोग से पेट साफ रखें। इससे रक्तचाप एक हफ्ते में ही सामान्य स्तर पर आ जाता है। जो लोग शीघ्रपतन की समस्या से ग्रसित है उन्हें भी शिलाजीत से लाभ पहुंचता है इसके लिए बीस.बीस ग्राम शिलाजीत और बंग भस्म में दस ग्राम लौह भस्म और छरू ग्राम अभ्रम भस्म मिलाकर घोटकर दो.दो रत्ती की गोलियां बना लें। सुबह के समय एक गोली को मिश्री मिले दूध के साथ सेवन आश्चयर्जनक लाभ देता है। शाम को भी इस योग का प्रयोग किया जा सकता है परन्तु शाम को भोजन के दो.तीन घंटे के बाद ही इसका प्रयोग करें। विशेषज्ञों के अनुसार शिलाजीत का प्रयोग करने के पहले वमनए विरेचन आदि क्रियाओं को करके शरीर को शुद्ध किया जाना जरूरी है इससे लाभ अधिक होता है। साथ ही इसका सेवन सूयोर्दय से पहले शहद या दूध के साथ करना चाहिए इसका सेवन करने के बाद चावलए दूध या जौ से बनी किसी चीज का सेवन करना चाहिए। शिलाजीत का प्रयोग उन लोगों को नहीं करना चाहिए जिनके शरीर में पित्त का प्रकोप हो। जिनके शरीर में गर्मी बढ़ी हुइर् हो उन्हें भी शिलाजीत से परहेज ही रखना चाहिए। शिलाजीत के सेवन के दौरान मिर्च.मसालेए खटाइर्ए मांस.मछलीए अंड़े तथा शराब आदि का प्रयोग वर्जित है साथ ही कब्जए मानसिक शोक तथा तनावए रात में जागनाए दिन मेंे सोना तथा लगातार ज्यादा मात्रा में शारीरिक श्रम आदि से भी बचना चाहिए। यांे तो शिलाजीत का सेवन केवल कुछ दिनों तक सेवन किया जाता है तो इससे कोइर् नुकसान नहीं है। शिलाजीत एक पौष्टिक द्रव्य है। परन्तु राह चलते या पटरी पर बैठे खरीददार से शिलाजीत खरीदने में धोखा हो सकता है इसलिए उसकी जांच करके ही खरीदें जो शिलाजीत पानी में डालते ही तार.तार होकर तली में बैठ जाए वही असली शिलाजीत है। साथ ही सूखने पर उसमें गोमूत्र जैसा गंध आएए रंग कालाए वजन हल्का तथा छुअन चिकनी हो तो समझ लें कि यही असली शिलाजीत है।

बरगद


बरगद का पेड़ है बहुत सारी बीमारियों की दवा, आजमाएं ये देहाती नुस्खे ---
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बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है। बरगद को अक्षय वट भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड कभी नष्ट नहीं होता है। बरगद का वृक्ष घना एवं फैला हुआ होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं। बरगद का वानस्पतिक नाम फाइकस बेंघालेंसिस है। बरगद के वृक्ष की शाखाएं और जड़ें एक बड़े हिस्से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं। इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस पेड़ को अनश्वंर माना जाता है।

बरगद के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ. दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहे हैं।

बरगद की जड़ों में एंटीऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। इसके इसी गुण के कारण वृद्धावस्था की ओर ले जाने वाले कारकों को दूर भगाया जा सकता है। ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में कुचला जाए और रस को चेहरे पर लेपित किया जाए तो चेहरे से झुर्रियां दूर हो जाती हैं।

लगभग 10 ग्राम बरगद की छाल, कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च को बारीक पीसकर पाउडर बनाया जाए और मंजन किया जाए तो दांतों का हिलना, सड़न, बदबू आदि दूर होकर दांत साफ और सफ़ेद होते हैं। प्रति दिन कम से कम दो बार इस चूर्ण से मंजन करना चाहिए।

पेशाब में जलन होने पर बरगद की जड़ों (10 ग्राम) का बारीक चूर्ण, जीरा और इलायची (2-2ग्राम) का बारीक चूर्ण एक साथ गाय के ताजे दूध के साथ मिलाकर लिया जाए तो अति शीघ्र लाभ होता है। यही फार्मूला पेशाब से संबंधित अन्य विकारों में भी लाभकारी होता है।

पैरों की फटी पड़ी एड़ियों पर बरगद का दूध लगाया जाए तो कुछ ही दिनों फटी एड़ियां सामान्य हो जाती हैं और तालु नरम पड़ जाते हैं।

बरगद की ताजा कोमल पत्तियों को सुखा लिया जाए और पीसकर चूर्ण बनाया जाए। इस चूर्ण की लगभग 2 ग्राम मात्रा प्रति दिन एक बार शहद के साथ लेने से याददाश्त बेहतर होती है।

बुधवार, 13 अगस्त 2014

कुछ अच्छी बातें

उपयोगी बाते जो शायद आपको पता न हो
1⃣ चींटीयो को भगाने के लिये उस स्थान पर ककड़ी के छिलके रखिये जहाँ चींटीयाँ हैं
2⃣ साफ़ और शुद्ध बफ॔ के लिये पानी को पहले उबाल लें
3⃣ आईने को साफ़ रखने के लिये स्प्राईट का उपयोग करेँ
4⃣चुइंगम को कपड़े से निकालने के लिये कपड़े को 1 घंटे फ्रीजर में रख दें
5⃣सफेद कपड़ो का सफेद रखने के लिये 10 मिनट तक गम॔ पानी में नींबू के साथ रखें
6⃣बालो को चमकाने के लिये एक चाय का चम्मच विनेगर लगाये फिर धो लें
7⃣ नींबू का अधिकतम रस निकालने के लिये उसे एक घंटे गम॔ पानी में रखें
8⃣ कपड़ो से स्याही के दाग छुड़ाने के लिये उस पर टूथपेस्ट लगाकर पोछ दें फिर धोयें
9⃣ चूहो को भगाने के लिये काली मिच॔ डाल दें
🔟सोने से पहले पानी पीये, 90% ह्रदयघात सुबह जल्दी होते है जो कि सोने से पहले एक या दो गिलास पानी पी कर दूर किया जा सकता
♻♻ पानी पीने के फायदे
1⃣सुबह उठने के बाद पानी पीने से आंतरिक तंत्र सक्रिय होता है
2⃣ खाने के आधा घंटा पहले पानी पीने से पाचन अच्छा होता है
3⃣ नहाने से पहले 1 गिलास पानी ब्लड प्रेशर को कम करता है
4⃣सोने से पहले एक गिलास पानी ह्रदयघात का खतरा कम करता है

** एक चाईनीज कहावत है " जब कोई आपसे कुछ अच्छी बातें बाँटे जो आपके लिये फायदेमंद है तो आपका नैतिक दायित्व है कि आप भी उसे दूसरे से बाँटकर उन्हे फायदा दैं"

तो अपना दायित्व निभायें.....

छींक अधिक आना



रविवार, 10 अगस्त 2014

भारतीय गाय का अर्थ शास्त्र



हर इंसान को ज़ीने के लिए कम से कम 3 चीजों की जरूरत है. हवा, पानी और खाना.
स्वच्छ हवा रही नहीं (पेट्रोल, डीज़ल), पीने का पानी मुफ्त मिलता नहीं शुद्धता की बात तो अलग है
(रासायनिक खेती, ग्लोबल वार्मिंग, गिरता पानी का स्तर),
खाने में भी जहर आ चूका है (रासायनिक खेती से भी और मिलावट करने वाले मुनाफाखोरी से भी).
भारत इन तीनों समस्या से जूझ रहा है.
भारत की कुछ प्रमुख समस्याएँ :-
1. किसानों की आत्महत्या. (कारण हर चीज बाहर से खरीदना रासायनिक खेती में, जैसे बीज, खाद, कीट नाशक, ट्रैक्टर
और उपज के समय मंडी में भाव न मिलना.)
2. बढ़ती महंगाई. (कारण पेट्रोल, डीज़ल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट, अत्यधिक टैक्स)
3. गिरती अर्थव्यवस्था. (घर की जगह विदेशी से प्यार किसी भी वजह से)
4. बढ़ती गरीबी. (बढ़ती महंगाई, पेट्रोल, डीज़ल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट, अत्यधिक टैक्स)
5. बिजली की कमी.
6. पानी की कमी.
इन सबका एक मुख्य कारण है,
सब कुछ बाहर से खरीदना जैसे बीज, खाद, कीट नाशक, दवाइयां, पेट्रोल, गैस.
आप इसको इस तरह समझिये, की आपने अपने घर में खाना बनाया तो खाना कितना सस्ता पड़ता है, और जब आप रोज
बाहर से खाना खरीदोगे तो खाना कितना महंगा पड़ेगा. रोज रोज बाहर से खरीदना मतलब अपनी सेहत भी खराब करना और पैसे भी लुटाना.
इसी तरह भारत सरकार अपने देश में मौजूद पशुधन का इस्तेमाल न करके, जब पेट्रोल, खाद, कीटनाशक, गैस इत्यादि बाहर से रोज रोज खरीदेगी तो देश का रुपया सुधारने से तो रहा, उल्टा गर्द में ही जायेगा.
आजादी के समय भारत का रुपया 1 अमरीकन डालर के बराबर था.
1988 में भी उदारीकरण की नीतिओ से पहले तक भारत का रुपया 1 डालर के मुकाबले 8 रुपया था. यानी 41 साल आजादी में 8 गुना गिरावट और उदारीकरण के माहौल में 25 सालों में 8 गुना गिरावट से रुपया 62 रुपये प्रति डालर रह गया. उदारीकरण माने भारत ने अपने बाजार को खोल दिया, और हर चीज विदेशी यहाँ आकर बिकने लगी. नतीजा आपके सामने है. 1917 तक भारत डालर के मुकाबले 10 गुना मजबूत था माने 1 रुपया 10 डालर के बराबर था. आजादी के इन 66 सालों में हमारी कौन सी सरकार ने किस के लिए क्या काम किया, यह सोचने का विषय है. भारत के लिए कुछ किया ऐसा कहना बिलकुल गलत होगा. अभी भी देर नहीं हुई है.
1. गैस, पेट्रोल और बिजली मीथेन गैस का उत्पादन ही तेल के बढ़ते दामों का सही जवाब और विकल्प है. आज नहीं तो कल तेल के भण्डार खली हो ही जायेंगे, तब भी हमको मीथेन गैस के उत्पादन की तरफ ही आना पड़ेगा. मीथेन गैस बनती है जैविक कचरे से अथवा पशु के गोबर से जैसे देसी गाय का गोबर. भारत जैसे विकासशील देशों को चाहिए की वह मीथेन गैस
का उत्पादन करके अपनी ऊर्जा की जरूरत को पूरा करें. भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा पशुधन 50 करोड़ का है, जो 25
करोड़ टन का गोबर उत्पादन करता है. इसको इस्तेमाल करके हम न सिर्फ रसोई गैस, बल्कि पेट्रोल में भी आत्मनिर्भर हो सकते हैं. LPG,केरोसिन, पेट्रोल इन तीनों को पूरी तरह से मीथेन गैस से हटाया जा सकता है. मीथेन गैस से बिजली भी बनती है जो की भारत के सारे गाँवों की बिजली की जरूरत को पूरा कर सकती है. मीथेन गैस बनने के बाद जो गोबर बचेगा वह खेती के लिए एक उपयुक्त खाद का भी काम करेगा जो कि रासायनिक फर्टिलाइजर पर भारत का खर्च होने वाला विदेशी मुद्रा को भी बचाएगा.
उत्तर प्रदेश में गोबर गैस अनुसंधान स्टेशन ने स्थापित किया है की एक गाय एक साल में पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस का उत्पादन करने के लिए गोबर देती है. कैलोरी मान तालिका में एक किलो मीथेन गैस, एक किलो पेट्रोल, रसोई गैस, मिट्टी का तेल या डीज़ल के लिए बराबर ऊर्जा सामग्री में है. रसोई गैस आम तौर पर मिट्टी का तेल ग्रामीण भारत में मुख्य ईंधन है, जबकि शहरी क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए एलपीजी प्रयोग किया जाता है. एक 15 किलो एलपीजी सिलेंडर छह लोगों के एक परिवार के लिए दो महीने तक रहता है. यही बात मिट्टी के तेल के लिए सच है. पूरे एलपीजी और मिट्टी के तेल की हमारे 121 करोड़ की आबादी की आवश्यकता को 9.2 करोड़ गायों के गोबर से उत्पादित मीथेन गैस पूरी करा सकती हैं.
सीएनजी की तरह, मीथेन गैस पेट्रोल की जगह में ऑटोमोबाइल इंजन चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. हमारा पेट्रोल की खपत (2003-04) में आठ लाख टन था. एक गाय पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस पैदा करता है. इस धारणा पर, हमें पेट्रोल की आठ करोड़ टन जरूरत को पूरा करने के लिए लगभग 4 करोड़ गायों की आवश्यकता होगी. अगर अब 2012-2013 में पेट्रोल की खपत 5 गुना (40 लाख टन ) भी हो गयी हो तो भी 20 करोड़ गाय ही इसके लिए काफी हैं.
बिजली एक जनरेटर 200 ग्राम पेट्रोल लेकर एक किलोवाट / घंटे (kWh) विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करता है. ग्रामीण क्षेत्र में
प्रति व्यक्ति विद्युत ऊर्जा की खपत प्रतिवर्ष 112 किलोवाट प्रति घंटा है. 74 करोड़ की हमारी ग्रामीण आबादी की विद्युत
ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक और 8.5 करोड़ गायों की आवश्यकता होगी. गोबर से मीथेन गैस प्राप्त
करना काफी आसान है. गोबर गैस संयंत्र 20,000 रुपये से 1,00,000 रुपये के बीच की लागत में और तीन घन मीटर से 270 क्यूबिक मीटर कैपेसिटी, और विभिन्न आकारों में उपलब्ध हैं. एक कंप्रेसर पोर्टेबल सिलेंडर में इस मीथेन गैस को निकालने और भरने के लिए चाहिए. ये मीथेन गैस सिलेंडरों से खाना पकाने के लिए, या ऑटोमोबाइल और दो पहिया वाहन में इस्तेमाल किया जा सकता है.
यानी कुल मिलकर 10 करोड़ गाय रसोई गैस, 20 करोड़ गाय पेट्रोल और 10 करोड़ गाय ग्रामीण बिजली के लिए काफी होगी. सिर्फ 50 करोड़ गाय से ही भारत स्वावलंबी बन सकता है. 

2. कृषि खाद (फर्टिलाइजर) और कीटनाशक किसानों की सारी समस्या का समाधान है सिर्फ देसी गाय.
बीज सिर्फ देसी ही ख़रीदे (पहली बार) खेती करने के लिए देसी बीज खरीदने होंगे. दूसरी बार किसान अपने बीजो से
ही खेती करेगा, बीज का खर्चा बचेगा. संकर यानि हाइब्रिड बीज से बीज नहीं बनते. आजकल जी म (जेनेटिकली मॉडिफाइड) बीज बाज़ार में उपलब्ध हैं, जो की न सिर्फ सेहत के दुश्मन है, बल्कि इन बीजो से आप बीज पैदा नहीं कर सकते. इन बीजो को बनाने वाले अपनी दूकान निरंतर चलाना चाहते हैं इसलिए वह नहीं चाहते की आप अपने बीज खुद बनाये. जो ये हाइब्रिड बीज अपने खेत में डालते हैं उन्हें हर हाल में यूरिया, डी ऐ पी जैसे जेहरीले रसायन भी खरीदने पड़ेंगे नहीं तो कुछ भी पैदा नहीं होगा. सिर्फ देसी बीज ही ले. दूसरी फसल से किसान का बीज का खर्चा ख़तम. यूरिया, डी ऐ पी की जगह डाले देसी गाय के गोबर और गोमूत्र की खाद. 1 एकड़ खेत में सिर्फ 10 किलो देसी गाय का गोबर, 5-7 लीटर गोमूत्र, 1 किलो गुड, 1 किलो आटा /बेसन, 1 मुठ्ठी पुराने पेड़ की मिटटी चाहिए. इन सबको 200 लीटर पानी में मिलाये. 48 घंटे छांव में रखें. उसके बाद सिंचन के पानी के साथ 1 एकड खेत में लगाये. यूरिया, डी ऐ पी का खर्चा पहली फसल से ही ख़तम. थोडा सा खर्चा गुड और बेसन लाने में होगा. कीटनाशक के लिए गोमूत्र 5 लीटर 100 लीटर पानी में मिलाकर 1 एकड़ खेत में छिड़क सकते हैं. इसी तरह से अलग अलग बिमारिओ या कीटों के लिए अलग अलग देसी प्राकृतिक दवाएं हैं. 


3. किसानो की आत्महत्या बंद होगी. खेती का खर्चा कम होगा, उपज कम नहीं होगी, उल्टा धीरे धीरे बढ़नी शुरू होगी.


4. जहर और केमिकल रहित खाने से लोगों का स्वस्थ्य सुधरेगा, जिससे कैंसर, ब्लड प्रेशर, सुगर और हार्ट अटैक जैसी गंभीर जानलेवा बिमारिओ से बचाव होगा. दवाइयों का खर्चा कम होगा. दवाइयों पर खर्च होने वाला भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार भी बचेगा. रूपये की अंतररास्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ेगी, जिसका सीधा फायदा महंगाई और गरीबी कम करेगा.


5. इस खेती को करने से पानी का जलस्तर बढेगा, पानी दूषित नहीं होगा.


6. हवा शुद्ध होगी क्योंकि पेट्रोल डीज़ल की जगह सब कुछ सी न जी से चेलगा.


मतलब गाय है तो भारत है और भारत है तो विश्व है…


इसलिए भारतीय समाज और संस्कृति सिर्फ और सिर्फ गाय को गौ माता का दर्जा देता है… 
हमको यह समझने में बहुत समय लग गया. 

लेकिन अगर हम आज भी प्रण ले ले की गाय को बचाना है क्योंकि गाय ही भारत को बचा सकती है.