सोमवार, 28 जुलाई 2014

अनानास (Pineapple)



अनानास (Pineapple) -
अनानास ब्राज़ील का आदिवासी पौधा है | क्रिस्टोफर कोलंबस ने 1493 AD में कैरेबियन द्वीप समूह के ग्वाडेलोप नाम के द्वीप में इसे खोजा था और इसे 'पाइना दी इंडीज' नाम दिया | कोलंबस ने यूरोप में अनानास की खेती की शुरुआत की थी | भारत में अनानास की खेती की शुरुआत पुर्तगालियों ने 1548 AD में गोवा से की थी | अनानास की डालियाँ काटकर बोने से उग आती हैं | 
अनानास का फल बहुत स्वादिष्ट होता है | इसके कच्चे फल का स्वाद खट्टा तथा पके फल का स्वाद मीठा होता है । इसके फल में थाइमिन,राइबोफ्लेविन,सुक्रोस,ग्लूकोस,कैफीक अम्ल,सिट्रिक अम्ल,कार्बोहाईड्रेट तथा प्रोटीन पाया जाता है | आज हम आपको अनानास के कुछ औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- अनानास फल के रस में मुलेठी, बहेड़ा और मिश्री मिलाकर सेवन करने से दमे और खाँसी में लाभ होता है|

२- यदि शरीर में खून की कमी हो तो अनानास खाने व रस पीने से बहुत लाभ होता है | इसके सेवन से रक्तवृद्धि होती है और पाचनक्रिया तेज़ होती है |

३- अनानास के पके फल के बारीक टुकड़ों में सेंधानमक और कालीमिर्च मिलाकर खाने से अजीर्ण दूर होता है |

४- अनानास के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसमें बहेड़ा और छोटी हरड़ का चूर्ण मिलाकर देने से अतिसार और जलोदर में लाभ होता है |

५- अनानास के पत्तों के रस में थोड़ा शहद मिलाकर रोज़ २ मिली से १० मिली तक सेवन करने से पेट के कीड़े ख़त्म हो जाते हैं |

६- पके हुए अनानास का रस निकालकर उसे रूई में भिगो कर मसूड़ों पर लगाने से दांतों का दर्द ठीक होता है |

अंजनहारी (गुहेरी )-




अंजनहारी (गुहेरी )- 

आँखों की दोनों पलकों के किनारों पर बालों (बरौनियों) की जड़ों में जो छोटी-छोटी फुंसियां निकलती हैं,उसे ही अंजनहारी,गुहेरी या नरसराय भी कहा जाता है | कभी-कभी तो यह मवाद के रूप में बहकर निकल जाती है पर कभी-कभी बहुत ज़्यादा दर्द देती है और एक के बाद एक निकलती रहती हैं | चिकित्सकों के अनुसार विटामिन A और D की कमी से अंजनहारी निकलती है | कभी-कभी कब्ज से पीड़ित रहने कारण भी अंजनहारी निकल सकती हैं |


रविवार, 27 जुलाई 2014

What is The Proper Time 2 Have a BREAKFAST,LUNCH&DINNER.Must Watch And Never Get ILL BY BHAI Rajiv Dixit Ji

सभी जीव जन्तुओ की जठराग्नि सुबह सूरज निकलने के ढाई घंटे तक सबसे ज्यादा तीव्र रहती है और ये ही सही वक़्त होता है सबसे ज्यादा भोजन ग्रहण करने का |
अपने आप को पेट से सम्बन्धी सभी रोगों से अगर बचाना चाहते हो तो अपने खाने पीने का समय निर्धारित करे |

पहला सूत्र :
सुबह का भोजन सूरज निकलने के ढाई घंटे के भीतर समाप्त कर ले और इसमें आप के भोजन की मात्र सबसे ज्यादा होनी चाहिए |
दूसरा सूत्र :
दोपहर में सुबह से एक तिहाई कम भोजन ही करना चाहिए | कुछ भी ना खाए तो भी कोई नुक्सान नहीं होगा लेकिन आप कुछ भी हल्का जैसे कि फल आदि से दुपहर का भोजन का काम चला सकते है |
तीसरा सूत्र :
शाम के वक्त दोपहर से भी एक तिहाई कम भोजन करना चाहिए और उसको करने का सही समय है सूर्योदय से ४० मिनिट पहले तक आपका भोजन समाप्त हो जाना चाहिए |
चौथा सूत्र :
रात में वैसे तो कुछ नहीं खाना चाहिए , सिर्फ सोते समय दूध का सेवन लाभकारी रहता है |

इसी तरह पानी पीने के चार सूत्र है :
पहला सूत्र :
पानी सदा धीरे धीरे घूंट घूंट करके ही पीना चाहिए |
दूसरा सूत्र :
पानी सदा गुनगुना ही पीना चाहिए , ठंडा पानी पीना यानि वात रोगों को बुलावा देना है |
तीसरा सूत्र :
पानी खड़े होकर न पीये , बैठ कर पीये , इससे आप घुटने के दर्द से बचे रहेंगे |
चौथा सूत्र :
सुबह बिना कुल्ला किया पानी गुनगुना करके अवश्य ही पीना चाहिए |

What is The Proper Time 2 Have a BREAKFAST,LUNCH&DINNER.Must Watch And Never Get ILL BY BHAI RAJIV DIXIT JI

https://www.youtube.com/watch?v=TkJXNYHIWBg

शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

प्राकृतिक दिनचर्या

प्राकृतिक दिनचर्या [भाग - १ ]
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प्रकृति हमारे जीवन का अभिन्न अंग है | हमें प्राकृतिक दिनचर्या का पालन करना चाहिये क्योंकि इसी से हम अपने आपको स्वस्थ एवं निरोगी रख सकते हैं | 
आज हम आपको प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों से अवगत कराएंगे --
१-प्रतिदिन सूर्योदय से पहले उठना चाहिए । सुबह उठते समय बायीं करवट लेकर उठना चाहिए | 
२-उठने के बाद तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी , तीन-चार गिलास की मात्रा में बासी मुँह पीना चाहिए | सुबह के समय , खाली पेट ,चाय का सेवन नहीं करना चाहिए |
३-शौच के लिए जाने में किसी प्रकार का आलस्य नहीं करना चाहिए तथा शौच के समय दांतों को दबाकर रखना चाहिए , इससे हमारे दांत मजबूत होते हैं । सूर्य की ओर मुख करके मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए |
४-दांतों की सफ़ाई के लिए नीम की दातुन का प्रयोग करना चाहिए |
५-सुबह के समय हमें अवश्य ही टहलना चाहिए तथा प्राणायाम व आसन का अभ्यास भी अवश्य करना चाहिए |


प्राकृतिक दिनचर्या [भाग - २ ] [कल का शेष भाग]
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प्रकृति हमारे जीवन का अभिन्न अंग है | हमें प्राकृतिक दिनचर्या का पालन करना चाहिये क्योंकि इसी से हम अपने आपको स्वस्थ एवं निरोगी रख सकते हैं |
आज हम आपको प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों से अवगत कराएंगे ----
१-स्नान करने से पहले १० मिनट के लिए शरीर की मालिश करनी चाहिए | यदि प्रतिदिन यह संभव न हो तो सप्ताह में एक दिन ऐसा अवश्य करें |
२- भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए तथा भूख से थोड़ा कम ही खाना चाहिए , इससे पाचन सम्बन्धी विकार नहीं होते हैं |
३-भोजन करने के बाद थोड़ी देर वज्रासन में अवश्य बैठना चाहिए | रात्रि के भोजन के पश्चात 10-15 मिनट अवश्य टहलना चाहिए |
४-स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए | यदि हम प्रतिदिन चार - पांच तुलसी और नीम की पत्तियों का सेवन करें तो इससे शरीर में रोग नहीं होते हैं |
५-दिन में नहीं सोना चाहिए क्योंकि यह स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होता है |
६- रात को सोने से पूर्व पैर धोकर सोने से नींद अच्छी आती है | हमेशा पश्चिम या उत्तर दिशा की ओर पैर करके ही सोना चाहिए अथवा पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर सर करके ही सोना चाहिए | विशषकर विद्यार्धियों को पूर्व दिशा की ओर सर करके सोना चाहिए |



बेल का वृक्ष

बेल का वृक्ष बहुत प्राचीन है |
यह लगभग २०-३० फुट ऊंचा होता है | 
इसके पत्ते जुड़े हुए त्रिफाक और गंधयुक्त होते हैं | 
इसका फल ३-४ इंच व्यास का गोलाकार और पीले रंग का होता है | 
बीज कड़े और छोटे होते हैं | 
बेल के फल का गूदा और बीज एक उत्तम विरेचक (पेट साफ़ करने वाले ) माने जाते हैं | 
बेल शर्करा को कम करने वाला,कफ व वात को शांत करने वाला,अतिसार, मधुमेह,रक्तार्श,श्वेत प्रदर व अति रज : स्राव को नष्ट करने वाला होता है | 
आइए जानते हैं बेल के औषधीय गुण -


जामुन [ Jambul Tree ]

जामुन [ Jambul Tree ]

जामुन के सदाहरित वृक्ष जंगलों और सड़कों के किनारे सर्वत्र पाए जाते हैं | इसका पेड़ आम के पेड़ की तरह ही काफी बड़ा होता है | जामुन के पेड़ की छाल का रंग सफ़ेद-भूरा होता है | इसके पत्ते आम और मौलसिरी के पत्तों जैसे होते हैं | जामुन के फूल अप्रैल के महीने में लगते हैं और जुलाई से अगस्त तक जामुन पक जाते हैं | जामुन में लौह [ iron ] और phosphorus काफी मात्रा में होता है | 
जामुन मधुमेह , पथरी , लिवर ,तिल्ली और खून की गंदगी को दूर करता है | यह मूत्राशय में जमी पथरी को निकलता है | जामुन और उसके बीज पाचक और स्तम्भक होते हैं |
जामुन का विभिन्न रोगों में प्रयोग :-----
१- ३००- ५०० मिली ग्राम जामुन के सूखे बीज के चूर्ण को दिन में तीन बार लेने से मधुमेह में लाभ होता है |
२- जामुन के १० मि.ली. रस में २५० मिली ग्राम सेंधा नमक मिलाकर दिन में २-३ बार कुछ दिनों तक निरंतर पीने से मूत्राशयगत पथरी नष्ट होती है |
३- जामुन के १०-१५ मि.ली. रस में २ चम्मच मधु मिलाकर सेवन करने से पीलिया , खून की कमी तथा रक्त विकार में लाभ होता है |
४- जामुन के पत्तों की राख को दांतों और मसूढ़ों पर मलने से दाँत और मसूढ़े मजबूत होते हैं |
५- जामुन के ५-६ पत्तों को पीसकर लगाने से घाव में से पस बाहर निकल जाती है तथा घाव स्वच्छ हो जाते हैं ।
६- तंग जूतों से पाँव में जख्म हो गए हों तो जामुन की गुठली को पानी में पीसकर लगाने से लाभ होता है |
नोट :- जामुन का पका हुआ फल अधिक मात्र में सेवन करना हानिकारक हो सकता है , इसको नमक मिलाकर ही खाना चाहिए |

मलेरिया


मलेरिया एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोज़ोआ परजीवी द्वारा फैलता है। मलेरिया सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों में से एक है तथा भंयकर जन स्वास्थ्य समस्या है।मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनोफ़िलेज़ (Anopheles) मच्छर है। इसके काटने पर मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर के बहुगुणित होते हैं जिससे रक्तहीनता (एनीमिया) के लक्षण उभरते हैं (चक्कर आना, साँस फूलना, द्रुतनाड़ी इत्यादि) । इसके अलावा अविशिष्ट लक्षण जैसे कि बुखार, सर्दी, उबकाई, और जुखाम जैसी अनुभूति भी देखे जाते हैं। गंभीर मामलों में मरीज मूर्च्छा में जा सकता है और मृत्यु भी हो सकती है।